माँ भले शक्कर थीं थोड़े थे तो खारे बाउजी
किंतु जीवन के सहारे थे हमारे बाउजी
भा गए मेले में जितने भी खिलौने थे हमें
जेब ख़ाली करके भी लाए वो सारे बाउजी
बेटियों की मायके में अहमियत ही क्या बची
हो गए जब से सुपुर्द-ए-ख़ाक प्यारे बाउजी
क्या कहूँ वो सख़्त थे पर सिर्फ़ बाहर की तरफ़
बेल के फल जैसे अंदर थे गुदारे बाउजी
वो गणित जब-जब पढ़ाते थे हमें अम्मा क़सम
कान पर लाफों पे लाफे धर के हारे बाउजी
मुझको दसवीं क्लास में अव्वल सुना तो रो पड़े
इतने भावुक थे हमारे प्यारे-प्यारे बाउजी
उनकी हर एक सीख ने हमको सँभाला हर क़दम
नित्य मेरी चेतना के हैं सितारे बाउजी
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