हुई इंतिहाई पुकार की शब-ए-इंतिज़ार भी अब नहीं - Prakash Pandey

हुई इंतिहाई पुकार की शब-ए-इंतिज़ार भी अब नहीं
कहीं खो गई मिरी आरज़ू मिरे दिल में प्यार भी अब नहीं

कोई इश्क़ में न फ़ना हुआ कोई जाँ-तलक न वफ़ा हुई
किसी अहल-ए-इश्क़ की बात पे मुझे ए'तिबार भी अब नहीं

कभी छोटी-छोटी सी बात पे कभी ज़िक्र-ए-रोज़-ए-फ़िराक़ पे
वो जो अश्कबार हुआ किए वही सोगवार भी अब नहीं

मुझे चाँद-तारों का शौक़ था मुझे ख़्वाब-कारी का ज़ौक़ था
मिले ज़ख़्म यूँ तिरे हिज्र में कि मैं ख़्वाब-कार भी अब नहीं

वो शगुफ़्तगी तुझे देख कर वो फ़सुर्दगी तुझे सोच कर
मिरे रंग पे मिरे रूप पे तिरा इख़्तियार भी अब नहीं

वो जो हर नफ़स मुझे याद था उसे रफ़्ता-रफ़्ता भुला दिया
कि मलाल-ए-यार तो क्या कहूँ कोई ज़िक्र-ए-यार भी अब नहीं

मिरी चाह में कोई मुझ तलक कभी आ न पाए तो क्या अजब
कि दिल-ओ-जिगर के दयार का कोई रहगुज़ार भी अब नहीं

- Prakash Pandey
1 Like

More by Prakash Pandey

As you were reading Shayari by Prakash Pandey

Similar Writers

our suggestion based on Prakash Pandey

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari