मुहब्बत में कई रस्म-ओ-वफ़ा से चोट लगती है
बिखरते जिस्म को अक्सर दवा से चोट लगती है
मुहब्बत में कशिश रखने को शर्माना ज़रूरी है
मगर ये जान ले शायर अदा से चोट लगती है
फ़क़ीरों से न पूछो तुम ख़ुदा ने क्या दिया उनको
ये वो बंदे हैं जिनको अब ख़ुदा से चोट लगती है
मुझे मालूम है मेरी मुहब्बत जाविदाँ होगी
तुझे क्या हो गया ज़ाहिद तुझे क्या चोट लगती है
मुहब्बत से गले मिलकर के रोना लाज़मी लेकिन
नई बुनियाद को ठंडी हवा से चोट लगती है
बहुत मायूस होकर के ये बच्चे शेर कहते हैं
मुझे राकेश इस आब-ओ-हवा से चोट लगती है
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