परिंदे आसमाँ को घर ज़मीं को ग़म समझते हैं

  - Rakesh Mahadiuree

परिंदे आसमाँ को घर ज़मीं को ग़म समझते हैं
नए अंदाज़ के बच्चे नए मौसम समझते हैं

कभी मिलकर अकेले में उसे झिंझोड़ कर देखो
जो फूलों से लिपटते हैं वही शबनम समझते हैं

परायों से भी मिलते हो हमें भी अपना कहते हो
हमारे हमबदन हो तुम तुम्हें बस हम समझते हैं

मेरे शेरों पे शह आएँगी मत घबराइए साहब
मुहब्बत करने वाले सब मेरा आलम समझते हैं

कहाँ पे दाद आनी है कहाँ पे दिल मचलना है
ग़ज़ल में आने वाले लोग चश्म-ए-नम समझते हैं

फराज़-ओ-फ़ैज़ होंगे और लोगों के बड़े शायर
मेरे शायर तुम्हें तो शायर-ए-आज़म समझते हैं

तुम्हारी उम्र के लड़को से बातें कम करो राकेश
तुम्हारी उम्र के लड़के बड़प्पन कम समझते हैं

  - Rakesh Mahadiuree

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