अश्कों से आँख उसकी कभी नम न हो
सारे ग़म मैं सहूँ पर उसे ग़म न हो
भैया तुमलोग बाबा से ये माँगना
प्यार की आग मेरे कभी कम न हो
एक विधवा की डोली सजी फिर से है
अबकी इससे अलग इसका प्रियतम न हो
पीर दुनिया में आख़िर बहुत ग़म है क्यों
क्या सभी जाएँगे मर अगर ग़म न हो
छोड़ना मत मुझे कब ये मैंने कहा
छोड़ना पर कभी आँख पुरनम न हो
इस तरह अपनी हालत पे इतराओ मत
क्या पता कल तुम्हारा भी हमदम न हो
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