जिस तरह से फूलों की डालियाँ महकती हैं
मेरे घर के आँगन में बेटियाँ महकती हैं
फूल सा बदन तेरा इस क़दर मोअत्तर है
ख़्वाब में भी छू लूँ तो उँगलियाँ महकती हैं
माँ ने जो खिलाई थीं अपने प्यारे हाथों से
ज़ेहन में अभी तक वो रोटियाँ महकती हैं
उम्र सारी गुज़री हो जिस की हक़-परस्ती में
उस की तो क़यामत तक नेकियाँ महकती हैं
हो गई 'रज़ा' रुख़्सत घर से बेटियाँ लेकिन
अब तलक निगाहों में डोलियाँ महकती हैं
As you were reading Shayari by SALIM RAZA REWA
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