मुझको जन्नत न बाग़-ए-इरम चाहिए
या नबी इक निगाह-ए-करम चाहिए
मेरी आँखें तरसती हैं दीदार को
इक झलक मुझको शाह-ए-उमम चाहिए
आपके रू-ए-अनवर को तकता रहूँ
मौत ऐसी ख़ुदा की क़सम चाहिए
जान दे दूँ मेरे मुस्तफ़ा के लिए
या ख़ुदा ऐसा सीने में दम चाहिए
दिल से माँगोगे सब कुछ मिलेगा 'रज़ा'
माँगने के लिए आँखें नम चाहिए
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