वो हसीं क़ातिल अदाएँ गुल-फ़िशानी अब कहाँ
वो लब-ओ-रूख़्सार वो रंगत सुहानी अब कहाँ
गुलशन-ए-दिल का वो माली खो गया जाने किधर
वो नहीं तो ग़ुंचा-ओ-गुल रात रानी अब कहाँ
दोस्तों में खेलना छुपना दरख़्तों के तले
वो सुहाने पल कहाँ यादें सुहानी अब कहाँ
थप-थपाकर गुन-गुनाकर मुझको बहलाती थीं जो
खो गईं वो लोरियाँ अब वो कहानी अब कहाँ
पेड़ बरगद का घना जो छाँव देता था कभी
गाँव में मिट्टी का घर छप्पर वो छानी अब कहाँ
बन के मेहमाँ घर में आते थे फ़रिश्तों की तरह
अब कहाँ मेहमान ऐसे मेज़बानी अब कहाँ
ढल गई अब तो जवानी जिस्म बूढ़ा हो गया
फिर न लौटेगा वो बचपन वो जवानी अब कहाँ
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