लबों पे उसके मिसरा लग रहा है
मिरा ये नाम नग़मा लग रहा है
पुकारा है मुझे जिस पल से उसने
मुझे वो शख़्स अपना लग रहा है
किसी सय्याद का हो जाल जैसे
अदा से उसकी ख़तरा लग रहा है
महक है इस फ़ज़ा में भीनी भीनी
ये उसके घर का रस्ता लग रहा है
हमारा नाम जोड़ा जा रहा है
मुझे ये काम उम्दा लग रहा है
तुम्हें ये चाँद दिलबर सा लगे है
मुझे दिलबर का झुमका लग रहा है
चुभेगा मख़मली बिस्तर भी मुझको
मुझे धरती पे अच्छा लग रहा है
उसी की राह मैं तकता हूँ छत पे
जिसे सीढ़ी से डर सा लग रहा है
वफ़ा के बोझ से मैं दब रहा था
चुकाया क़र्ज़ हल्का लग रहा है
ख़ुशी से मिल रहे हो "शान" इतनी
मुझे लहजे में शिकवा लग रहा है
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