आसूदगी को ऐसे बुलाना पड़ा मुझे - Shivang Tiwari

आसूदगी को ऐसे बुलाना पड़ा मुझे
पर्दा तुम्हारे रुख़ से हटाना पड़ा मुझे

जज़्बात-ओ-जोश आतिश-ए-सय्याल बन गए
तिश्ना लबों से इनको बुझाना पड़ा मुझे

दामन में उसके चाँद सितारे सजाने को
अम्बर को भी ज़मीं पे झुकाना पड़ा मुझे

गुलशन में ये महक नहीं ऐसे ही छा गई
मुरझा गई कली को खिलाना पड़ा मुझे

- Shivang Tiwari
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