राज़ अब सारे बताने हैं मुझे
ज़ख़्म सब अपने दिखाने हैं मुझे
कह न पाऊँगा उसे फिर हाल-ए-दिल
हर्फ़ काग़ज़ पे सजाने हैं मुझे
कर यक़ीं वादे पे उसके आज भी
नैन अपने फिर थकाने हैं मुझे
जोड़ने हैं चंद सिक्के रोज़ ही
और बच्चे भी पढ़ाने हैं मुझे
मेरी जितनी हैसियत है बज़्म में
शेर उतने ही सुनाने हैं मुझे
पास्ता बर्गर समोसे छोड़ कर
दाल चावल घर के खाने हैं मुझे
जोड़ने हैं रोज टुकड़े धूप के
स्याह कोने जगमगाने हैं मुझे
चूड़ियाँ कंगन उसे भाते नहीं
कान के झुमके दिलाने हैं मुझे
आगे बढ़ना ही मेरा मक़सद नहीं
जो गिरें वो भी उठाने हैं मुझे
कर रहा हूँ पैरवी गुलशन की तो
फूल पत्ते सब चुराने हैं मुझे
कोई बैचैनी कोई उजलत नहीं
शेर धीरे से पकाने हैं मुझे
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