जाने क्या एक परी-ज़ाद ने देखा मुझ में
भर दिया रंग मोहब्बत का निराला मुझ में
मैं बताता था उसे मुझ में बहुत ख़ामी हैं
फिर भी कुछ ढूँढ ही लेता था वो अच्छा मुझ में
वो भी क्या दिन थे मिरी आँखें खुली रहती थीं
जागता रहता था मैं और वो सोता मुझ में
कौन रुकता है किसी के लिए इस दौर में अब
ऐसे आलम में भी इक शख़्स है ठहरा मुझ में
देखते देखते हो जाऊँगा तुझ सा इक दिन
और ये बदलाव भी अब जल्द ही होगा मुझ में
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