और बीमारी की मीआद बढ़ा देते हैं
लोग बीमार को मरने की दुआ देते हैं
मुश्किलें ठहरे हुए शख़्स की बढ़ जाती हैं
जाने वाले तो फ़क़त हाथ हिला देते हैं
मुफ़्लिसी पर नहीं कुछ अपनी तमन्ना मौक़ूफ़
फिर भी कुछ लोग मिरा काम चला देते हैं
चुप रहा करते बहुत काम में आने वाले
और एहसान-फ़रामोश जता देते हैं
ताक़त-ए-सब्र का अंदाज़ा नहीं होता है
लोग तक़दीर का लिक्खा भी मिटा देते हैं
तू भी ख़ुशहाल रहे और तिरे अपने भी
हम तो ऐ दोस्त तुझे ये ही दुआ देते हैं
इस की बातों में न आना ये वही दुनिया है
लोग रस्सी को जहाँ साँप बना देते हैं
अब हमें ये भी नहीं याद यहाँ आ कर हम
जाने किस शख़्स को हर बार सदा देते हैं
ज़िंदगी रंग उन्हीं लोगों की लाती है यहाँ
वक़्त पड़ने पे जो जी जान लगा देते हैं
हम भी धोके में नहीं रखते किसी को सोहिल
सामने वाले को आईना दिखा देते हैं
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