मेरा ग़म बाँटना चाहेंगे नहीं ये मुझ से
ऐसे बिछड़े हैं ख़ुशी बाँटने वाले मुझ से
बस यही बात बहुत है मेरा दिल रखने को
तू हमारा है कोई आ के ये कह दे मुझ से
मैं इधर हाथ दुआओं में उठाता अपने
मुँह उधर फेर लिया करते थे तारे मुझ से
मैं अकेला ही नज़र आऊँगा इस दुनिया में
छूट जाएँगे किसी रोज़ सहारे मुझ से
अब इसी रूप में अपना ले तू मुझ को तन्हा
ज़िंदगी और नहीं होंगे तमाशे मुझ से
बस इसी आस में पलकें नहीं झपकीं अपनी
जाने किस भेस में आ जाए वो मिलने मुझ से
अब जो तकलीफ़ मुझे होगी रहेगी मुझ तक
अब तो अपने भी परेशाँ नहीं होंगे मुझ से
न किसी का मैं हुआ और न मेरा कोई
मेरे जैसे यहाँ टकराए अभागे मुझ से
हाल-ए-दिल क्या ही कहूँ उस से अब अपना 'सोहिल'
बात करता नहीं जो आँख मिला के मुझ से
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