कुछ घड़ी को ही यहाँ कोई भला लगता है
चार दिन बाद तो मेहमान बुरा लगता है
फिर बताऍंगे गुज़र जाने दो पूरा सावन
पहली बरसात में सब कुछ ही नया लगता है
ज़हर के घूँट पिए जाते हैं हँसते हँसते
इश्क़ सच्चा हो तो महबूब ख़ुदा लगता है
तू मुझे वक़्त न दे कोई परेशानी नहीं
ग़ैर के मुँह लगा करता है बुरा लगता है
वर्ना ये टीस नहीं उठती हमारे दिल में
ऐसा लगता है कोई अपना ख़फ़ा लगता है
जो रहा करता है मतलब पे हमेशा मौक़ूफ़
ऐसा इंसान मुझे सच में बुरा लगता है
चारा-साज़ी में कोई और नहीं है तुझ सा
तेरे हाथों में मुझे ज़हर दवा लगता है
अपने किरदार से बाहर नहीं जाना सोहिल
एक किरदार में तू सब से जुदा लगता है
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