अब फ़लक से तो नहीं कोई याँ आने वाला
कोई टकराएगा शायद कि ज़माने वाला
जो नज़र फेर के बैठे हैं वही लोग हैं बस
और कोई नहीं दिल मेरा दुखाने वाला
रूठ कर जाते हुए लोग बहुत देखे मगर
अब तलक देखा नहीं नाज़ उठाने वाला
घर की रौनक़ भी नहीं देख सका घर आ कर
कितनी ख़ुशियों से है महरूम कमाने वाला
इसलिए भी मैं नहीं होता किसी से नाराज़
जानता हूँ कि नहीं कोई मनाने वाला
इस तरह ज़िंदगी इक रंग में ढाली अपनी
चढ़ नहीं पाया कभी रंग ज़माने वाला
दास्ताँ सुनता रहा बैठ के ग़म की दिल की
चारागर हम को मिला दर्द बढ़ाने वाला
जितने इल्ज़ाम हों सर आपके आ जाते हैं
ऐसा माहौल बना देता है जाने वाला
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