वही लहजा वही चेहरा नया रस्ता है दोज़ख़ का
मुहब्बत और नहीं कुछ भी ये दरवाज़ा है दोज़ख़ का
अगर देखे नहीं तुमने पिता के आँख के आँसू
यक़ीनन फिर तुम्हारे साथ तो पहरा है दोज़ख़ का
गुज़ारी ज़िंदगी तन्हा अकेले उम्र भर हमने
कहानी सुन के लगता है जहाँ बढ़िया है दोज़ख़ का
लिखा करता यहाँ जो भी फ़क़त महबूब पर ही शेर
सुख़न-वर हो नहीं सकता वो बस शोहरा है दोज़ख़ का
बदन जब पहले आए ज़ुल्फ़ के तो तुम समझ लेना
तुम्हारा इश्क़ और आशिक़ बना क़िस्सा है दोज़ख़ का
ग़लत को दे रहे हैं वो सज़ा हर ग़लती गिन गिन कर
यहाँ के लोग से मक़सद तो पाक़ीज़ा है दोज़ख़ का
Read Full