शाम होने को है अब लौट के घर आ जाओ
नौ-परिंदे की गुज़ारिश है कि पर आ आओ
मुझसे नाराज़ हो नाराज़ बने रहना तुम
रात होने से ज़रा पहले मगर आ जाओ
एक मुद्दत से कोई दर पे मेरे आया नहीं
शख़्स आए न अगर, कोई ख़बर आ जाओ
कुछ दिनों से मेरी आंखें हैं बहुत खाली सी
इनको भरने के लिए दर्द-ए-जिगर आ जाओ
रात आधी है मगर नींद नज़र आए नहीं
सुब्ह की पहली किरण तुम ही नज़र आ जाओ
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