ज़माना इस लिए लहजा बदल रहा है दोस्त
हमारा वक़्त ज़रा पीछे चल रहा दोस्त
मैं मुस्कुरा रहा हूँ तेरी रुख़्सती पे अगर
तो मुझ में कौन है जो हाथ मल रहा है दोस्त
न मिल सकी मिरे हिस्से की रौशनी भी मुझे
मिरा चराग़ कहीं और जल रहा है दोस्त
पलीद कर के हमारे वजूद की मिट्टी
हमारे नाम का सूरज निकल रहा है दोस्त
बताएँ क्या तुझे अब ख़स्ता-हाली-ए-दिल 'राज़'
शिकस्ता ख़्वाब के टुकड़ों पे पल रहा है दोस्त
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