उसे भुलाने की हर हद तलक गया हूँ मैं - Aqib khan

उसे भुलाने की हर हद तलक गया हूँ मैं
सफर तवील था इतना के थक गया हूँ मैं

यूँ बे-सबब मुझे मय-ख्वार क्यों समझते हो
किसी के देखने भर से बहक गया हूँ मैं

कोई जो पूछे मेरे बाद उससे कह देना
ज़मीं थी रास न आई , फलक गया हूँ मैं

कि राह-ए-इश्क़ चुनी है ये ख़ुद की मर्ज़ी से
समझ रहे हैं वो भटके...भटक गया हूँ मैं

रुकी हुई किसी नंबर पे उस सुई की तरह
किसी चुड़ैल पे आकर अटक गया हूँ मैं

मुझे ये डर था कहीं ज़ख्म भर न जाएँ मिरे
सो उन पे माज़ी की मिर्ची छिड़क गया हूँ मैं

- Aqib khan
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