दिल तेरी क़ैद में इतना मजबूर है
मेरे अंदर है मुझसे मगर दूर है
चोट दोनों को आई जुदाई से पर
ज़ख़्म उसका है मेरा तो नासूर है
मेरे ग़म पर हँसे तो अजब क्या हुआ
यार ये तो ज़माने का दस्तूर है
मुझसे पहले ही सबने कहा था कि वो
दिल दुखाएगी आदत से मजबूर है
कोई देना जो चाहे तो आराम दे
दर्द पहले से सीने में भरपूर है
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