तुम्हारी आँखें कमाल आँखें तुम्हारा हुस्न-ओ-जमाल आँखें
खिले कँवल ख़्वाबों के हैं कितने तुम्हारी आँखें हैं ताल आँखें
बदन है शाही महल ये उनका है इसमें दीवाने-ख़ास ये दिल
ये अबरू महराब जिसके नीचे खड़ी हैं दो द्वारपाल आँखें
गुलाब आरिज़ हैं बर्गे-गुल लब कमान अबरू घटाएँ गेसू
अब इस्ति'आरा इन्हें में क्या दूँ तुम्हारी हैं बे-मिसाल आँखें
परिंदा दिल का कहीं न हो जाए क़ैद अब हुस्न के क़फ़स में
अदाओं के दाने डाल कर ये बिछाए बैठी हैं जाल आँखें
नहीं हुई है ये लब-कुशाई हुई मुकम्मल है गुफ़्तगू भी
जवाब आँखों ने दे दिए हैं जो कर रही थीं सवाल आँखें
अगर उठीं तो ये साथ उठतीं झुकीं अगर तो ये साथ झुकतीं
ये साथ हँसतीं ये साथ रोती हैं कितनी ये हम-ख़याल आँखें
ये आसमाँ रेग़जार जंगल पहाड झरना नदी समंदर
'अनीस' इतने हैं जज़्ब मंज़र हमारी इतनी विशाल आँखें
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