मुख़्तसर इश्क़ की अब कहानी रही
जान जानिब हवस की रवानी रही
वक़्त ने यूँ सताया मुझे जानेमन
कशमकश में मेरी ज़िन्दगानी रही
हुस्न पर नाज करने उसे दो अभी
उम्र भर कब किसी की जवानी रही
क्या रहा,कुछ नहीं,और दिल में मेरे
तू रही औ तेरी कुछ निशानी रही
कब हुई क्या ख़ता सोचता मैं यही
दूर क़िस्मत से क्यों शादमानी रही
मैं दग़ा खा के भी नासमझ ही रहा
और दग़ा दे के भी तू सयानी रही
कौन कब जख़्म कितने दे जाते रहे
याद सब कुछ मुझे मुँहज़बानी रही
पास जब तक मेरे था मेरा चाँद वो
चाँदनी भी मेरी नौकरानी रही
Read Full