अपने घर उसने मुझ को अकेले बुला रक्खा है
इत्र से कमरा फूलों से बिस्तर सजा रक्खा है
आप इक तरफ़ा ऐलान कर देते तो अच्छा था
वक़्त आने पे देखेंगे ये क्या लगा रक्खा है
झेले हैं जिसकी ख़ातिर मुहब्बत में हमने अज़ाब
कहता फिरता है सबसे मुहब्बत में क्या रक्खा है
रात भर पढ़ता होगा ये लगता है माँ बाप को
और लड़के को लड़की ने रातों जगा रक्खा है
चार दिन बाहों में ले के इतरा रहे हैं रक़ीब
उसके पहलू में तो मैंने अरसा बिता रक्खा है
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