दिल में मेरे है क्या छिपा तेरे सिवा कुछ भी नहीं
तेरे सिवा मेरी दवा मेरी दुआ कुछ भी नहीं
समझे कभी वो प्यार को मैं कुछ न कुछ करता रहा
मैं बस जतन करता रहा उसको दिखा कुछ भी नहीं
तू छोड़ कर जब से गया अब क्या बताऊँ हाल मैं
तू रूह थी जैसे मेरी मुझमें बचा कुछ भी नहीं
मैं बस यही कहता रहा तुमसे मुहब्बत है मुझे
कितना कहा मैंने उसे उसने सुना कुछ भी नहीं
आँसू से फिर इस आसमाँ पर ख़त लिखे मैंने उसे
उसकी जो छत पर ख़त गिरे उसने पढ़ा कुछ भी नहीं
सब तीर से आकर लगे उसने कहा मैंने सुना
नम आँख से सुनता रहा मैंने कहा कुछ भी नहीं
तुमको प्रिये लिख कर वहीं ख़ुद को तुम्हारा लिख दिया
समझो लिखा जो बीच में मैंने लिखा कुछ भी नहीं
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