इक भरम दुनिया में हमने अब जमाया - Lalit Mohan Joshi

इक भरम दुनिया में हमने अब जमाया
सामने सबके यूँ ख़ुद को फिर हँसाया

धूप क्यूँ इतना तपाती है बदन को
मुफ़्लिसी ने क्यूँ उसे इतना रुलाया

तोड़ती पत्थर सड़क के वो किनारे
दर्द को हँस कर यूँ उसने फिर भुलाया

फ़ीस उसको देनी थी बच्चों की ख़ातिर
सो थकन के बाद भी ख़ुद को जगाया

बेबसी सब कुछ सिखाकर यूँ चली है
मौत को उसने गले फिर है लगाया

- Lalit Mohan Joshi
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