मैं बना इक साहिब-ए-असरार हूँ - Lalit Mohan Joshi

मैं बना इक साहिब-ए-असरार हूँ
मैं छपा फिर आज तो अख़बार हूँ

ग़म बहुत है यार माना अब मगर
मैं भी ख़ुशियों का यहाँ हक़दार हूँ

वो बना है जान का जंजाल है
मैं मगर उसका वही इतवार हूँ

इक पुरानी है कहानी ये सुनो
मैं किसी की आज भी रफ़्तार हूँ

यार बेपरवाह माना हूँ यहाँ
पर यक़ीनन मैं तबस्सुम-ज़ार हूँ

माँ के हाथों की वो रोटी क्या कहूँ
दूर होकर उससे मैं बेज़ार हूँ

क्यूँ डरे दिल तोड़ने से वो यहाँ
मैं जो उसका अब ज़मानत-दार हूँ

सह गया मैं दर्द को यूँ आपके
मैं यक़ीनन ही बड़ा दिलदार हूँ

- Lalit Mohan Joshi
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