मसअला रोने का हल होने लगा है

  - Lalit Mohan Joshi

मसअला रोने का हल होने लगा है
ये यक़ीनन आज कल होने लगा है

जश्न तेरी जीत का होता रहा था
तू मगर रद्द-ए-अमल होने लगा है

दौर माना है बुरा तेरा मगर अब
रास्ता मोती-महल होने लगा है

यार उसका नेक माना है इरादा
ख़्वाब अच्छा बे-महल होने लगा है

दुनिया जितना ये रुलाएगी तुझे फिर
धीरे धीरे तू जबल होने लगा है

जो किया अच्छा बुरा तूने यहाँ पर
वो तेरा तो भाग-फल होने लगा है

ये ललित के साथ जाने क्यों हुआ है
आजकल वो बे-अमल होने लगा है

  - Lalit Mohan Joshi

More by Lalit Mohan Joshi

As you were reading Shayari by Lalit Mohan Joshi

Similar Writers

our suggestion based on Lalit Mohan Joshi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari