मैं अपने शेर जीना चाहता हूँ - Praveen Sharma SHAJAR

मैं अपने शेर जीना चाहता हूँ
सुरा अब सच में पीना चाहता हूँ

लगा है इश्क़ इक मरियम का जब से
मैं पंडित भी मदीना चाहता हूँ

तू अच्छा है मेरा तू दोस्त मत बन
मैं अपना सा कमीना चाहता हूँ

मैं जिस में चार दिन तनख़्वाह पाऊँ
कोई ऐसा महीना चाहता है

मेरी चाहत है उसका दिल पसीजे
मैं पत्थर में पसीना चाहता हूँ

नहीं है डर मगर मरने से पहले
मैं इक दिन खुल के जीना चाहता हूँ

मुलाज़िम हूँ किसी दफ़्तर का मैं भी
'शजर' मैं भी सरीना चाहता हूँ

- Praveen Sharma SHAJAR
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