बग़ैर इंसानियत के याँ कोई मज़हब नहीं मिलता
किए बिन इश्क़ दुनिया में किसी को रब नहीं मिलता
मजाज़ी से हक़ीक़ी तक सफ़र करना ज़रूरी है
वगर्ना ज़ीस्त जीने का कोई मतलब नहीं मिलता
किसी को सोग मिलता है किसी को मिलती है बहजत
हमेशा एक मुद्दत में यहाँ पर सब नहीं मिलता
मोहब्बत इक मुक़द्दस इल्म है सब को नहीं होता
जिसे होता है उस को अम्न रोज़-ओ-शब नहीं मिलता
अदाओं से वफ़ाओं से रिझाया जाता है महबूब
अकारत पुर-सुकूँ होने से ग़ुंचा-लब नहीं मिलता
ये आफ़ाक़ी हक़ीक़त है कि जैसा कर्म वैसा अज्र
किसी भी कार का तावान बे-मतलब नहीं मिलता
'मिलन' यूँ तो ज़माने भर से है पोशीदगी मेरी
मगर ये जाँ निकलती है वो मुझ से जब नहीं मिलता
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