यादों के सहारे तिरे हर ख़त के सहारे
इक उम्र गुज़ारी है अज़िय्यत के सहारे
मैं ले के तुम्हें घर से अगर भाग भी जाऊँ
होगी न बसर सिर्फ़ मोहब्बत के सहारे
निर्भर है नसीब अपना तग-ओ-दौ पे हमारी
बाक़ी जो बचा है वो है क़िस्मत के सहारे
ये मार दिए जाएँगे गर छोड़ दिया जाए
अर्बाब-ए-मोहब्बत को जमाअत के सहारे
शुभ दिन तो नहीं आएँगे ता-उम्र मगर हम
मर जाएँगे ऐसे तो महूरत के सहारे
तू क्या गया है हो गईं ज़हरीली हवाएँ
धड़कन तो चले है तिरी निकहत के सहारे
इक-दूजे को पाने की नहीं और कोई उम्मीद
हम दोनों मिलेंगे तो बग़ावत के सहारे
इस जन्म में मिलना जो अगर है नहीं मुमकिन
जी लेंगे 'मिलन' अगली विलादत के सहारे
As you were reading Shayari by Milan Gautam
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