अंदर से जो भी टूटा है
बाहर से खुलकर हँसता है
जो मेरी बात समझता हो
कोई शख्स नहीं ऐसा है
मैंने जो भी देखा है कल
मेरी नजरों का धोखा है
अब बात नहीं पहले जैसी
अब मजबूरी का रिश्ता है
सब लोग मेरे बारे में क्यूँ
कहते हैं लड़का अच्छा है
इक दिन मैं जब मर जाऊँगा
देखेँ कौन यहाँ रोता है
तस्वीर तेरी , ज़ाम , किताबें
बस इतना मेरा कमरा है
दिल पर जब आ बनती है तब
सब कहते हैं दिल बच्चा है
ईद चली जाती हो जब तुम
मेरा चाँद नहीं दिखता है
As you were reading Shayari by Prashant Sitapuri
our suggestion based on Prashant Sitapuri
As you were reading undefined Shayari