यूँ तो कितने ही नौनिहाल उठे
जब उठे हम तो बा-कमाल उठे
मैं तो दफ़्तर से आ के लेटा था
फिर अचानक तेरे ख़याल उठे
कोई शाइर हो शे’र कहता हो
है मेरे सामने मजाल उठे ?
मैं मुहब्बत में जीत जाता पर
उस तरफ़ से जो कोतवाल उठे
मुझको उससे बिछड़ के मरना था
ख़्वाह मख़ाह इश्क़ पर सवाल उठे
As you were reading Shayari by Rohit tewatia 'Ishq'
our suggestion based on Rohit tewatia 'Ishq'
As you were reading undefined Shayari