बेवफ़ा शख़्स मिरी बात जो मानी होती
तो मुहब्बत की ये कुछ और कहानी होती
गर मुहब्बत के समन्दर में रवानी होती
ख़त्म तब दिल कि मिरे तिश्ना-दहानी होती
दर्द तू क़ैस का अच्छे से समझता क्या है
तेरी क़िस्मत में अगर ख़ाक उड़ानी होती
ग़ौर से सुनता मिरी बातें ज़माना सारी
मेरी हर बात अगर तेरी ज़बानी होती
मैं अगर लिखता मुहब्बत की कहानी कोई
उस कहानी में वो इक शाह की रानी होती
ऐ हसीं शख़्स अगर तू मिरा हमदम बनता
सारी दुनिया ये मिरी दुश्मन-ए-जानी होती
सब ही ख़ुश हो के यहाँ आते कोई रोता नईं
इतनी अच्छी ही अगर दुनिया-ए-फ़ानी होती
गर शजर दिल्लगी कर लेता किसी इंसाँ से
आज मय्यत पे तिरी मर्सिया-ख़्वानी होती
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