ख़ुशी के गीत ग़ज़ल गुनगुनाना भूल गया
बिछड़ के तुझ से शजर मुस्कुराना भूल गया
चराग़-ए-इश्क़-ओ-मुहब्बत जलाना भूल गया
मैं आज अपना फ़रीज़ा निभाना भूल गया
हयात अपनी गुज़ारेगा अब फ़क़ीरी में
ये बादशाह तिरा आस्ताना भूल गया
तमाम शब मुझे इस बात का मलाल रहा
वो आज कैसे मिरा दिल दुखाना भूल गया
ज़रा उरूज मिला तो बदल लिया लहजा
कमीन अपना पुराना ज़माना भूल गया
जबीन-ए-आब-ए-समंदर पे तिश्नगी रख कर
वहाँ से ख़ुश्क लबों को हटाना भूल गया
घटा जो शहर में आई तो ये ख़्याल आया
मैं तेरी ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ बनाना भूल गया
हमारे दिल की गली से खुरूज करते हुए
वो अपने नक़्श-ए-कफ़-ए-पा मिटाना भूल गया
सफ़र हयात का इक पल में कर दिया ज़ाया
मैं हाए तुमको गले से लगाना भूल गया
मलाल इश्क़ के मैदान से शजर अपने
ग़रीब दिल का जनाज़ा उठाना भूल गया
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