जिगर से ज़िंदगी से और मेरे दिल की धड़कन से
निकल जाओ निकल जाओ ख़ुदारा मेरे मस्कन से
कहा सय्याद ने हँसते हुए माली से ऐ माली
मैं इस बुलबुल को ले जाऊँगा इक दिन तेरे गुलशन से
जो पूछा यारों ने उससे तुम्हें कब से मोहब्बत है
तो मैंने यारों से बोला जवाबन यारों बचपन से
अजब ये मरहला पेश आ रहा है साथ में मेरे।
खिंचा जाता हूँ मैं इक अजनबी पायल की खन-खन से
मेरे महबूब मेरे हमनशीं सुन साथ में तेरे
ये ख़ुशियाँ सारी हो जायेंगी रुख़सत मेरे आँगन से
घड़ी को खोल दे अपनी कलाई से पहन कंगन
कलाई और हसीं लगने लगेगी तेरी कंगन से
ये माना ख़त जला दोगी मेरा नंबर मिटा दोगी
मगर कैसे निकलोगी बताओ तुम मुझे मन से
जफ़ा करने का ये उनका नया अंदाज़ है देखो
गले मिलते हैं मेरे सामने वो मेरे दुश्मन से
ख़ुदा का वास्ता तुमको मुझे शेवन से मत रोको
सुकून-ए-क़ल्ब मिलता है मुझे ऐ यारों शेवन से
मुसीबत में मुझे तुम सच्चे दिल से याद कर लेना
शजर तुमको निकालूँगा मैं बाहर आ के उलझन से
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