अंदर ही अंदर मुझ में है, रोता दर्द - BR SUDHAKAR

अंदर ही अंदर मुझ में है, रोता दर्द
दिल से निकलता ही नहीं, मेरे दिल का दर्द

होता गर तुझको भी मेरे जैसा दर्द
तब तू जान ही जाती, आख़िर है क्या दर्द

कोई मेरे आंसू समझे बस इतना
मैं उससे कह देता अपना सारा दर्द

दिल मेरा बरसो पहले टूटा था, पर
इसमें रहता है अब भी कुछ हल्का दर्द

कोई साथ निभाओ हाथ बटाओ मेरा
कब तक ढोते रहूंगा मैं, यू तन्हा दर्द

मुझ पे कुछ तू तरस खा के ही आजा अब
नाम तेरा लेता है, दिल में उठता दर्द

साथ निभाता रहता है हरदम मेरा
हाथ का पैर का और मुझे फिर सर का दर्द

शायद मुझ को कोई बीमारी है ' सलीम '
मुझमें ये डर बैठा है, फिर कोई देगा दर्द

- BR SUDHAKAR
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