उम्र लगती है तो लहजा-ए-ग़ज़ल बनता है
एक दो दिन में कहीं ताजमहल बनता है
हम पे लाज़िम है कि हम वक़्त को ज़ाया न करें
आज की क़द्र करेंगे तो ही कल बनता है
तपना पड़ता है मुक़द्दर को बनाने के लिए
खारा पानी तभी बरसात का जल बनता है
उसने इल्ज़ाम लगाया तो ये हक़ है मेरा
यार अहसान का इतना तो बदल बनता है
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