एक तमाशा है रिंदों का दौर है ये पैमानों का - Dharmesh bashar

एक तमाशा है रिंदों का दौर है ये पैमानों का
दुनिया जिसका नाम है वो है मयख़ाना मयख़ानों का

ऐ उल्फ़त ये शोहरत है या बदनामी कुछ तू ही बता
गर्म है इक बाज़ार ज़माने में मेरे अफ़सानों का

दीदा-ए-तर उसके क़दमों में दौलत बर्बाद न कर
मोल वो ज़ालिम क्या समझेगा मोती के इन दानों का

दुनिया वालों ने अश्कों की बारिश को पानी समझा
वो क्या जाने अस्ल में ये है ख़ून मिरे अरमानों का

दूर रहो इस बीमारी से इसका कोई तोड़ नहीं
इश्क़ दिलों का रोग है यारो इश्क़ है दुश्मन जानों का

ये गाड़ी ये ऊँची कोठी ये धन दौलत आख़िर क्यूँ
इशरत के सामान सजाना काम नहीं मेहमानों का

मैं भी कैसा दीवाना हूँ हैवानों की दुनिया में
शमअ जलाए ढूँढ रहा हूँ एक नगर इंसानों का

कौन सुनेगा शेर तुम्हारे 'बशर' उठो महफ़िल से अब
बज़्म-ए-ख़िरद में काम ही क्या है तुम जैसे दीवानों का

- Dharmesh bashar
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