इसे भी शूमी-ए-क़िस्मत का सिलसिला सोचूँ

  - divya 'sabaa'

इसे भी शूमी-ए-क़िस्मत का सिलसिला सोचूँ
जबाँ पे लफ़्ज़ न आए अगर दुआ सोचूँ

सभी शिकायत-ओ-शिकवे वफ़ात पा जाएँ
ख़ुद अपनी ज़ात को जब तेरा आइना सोचूँ

लहू उगलते हुए ज़ख़्म भी हसीन लगें
मिरी ये शोख़ हथेली पे जब हिना सोचूँ

तिरा करम है जो बख़्शा शुऊर-ए-ग़म मुझको
न अब इलाज की चाहत न अब दवा सोचूँ

इसे हिसार करे दायरा फ़सादों का
बराय-ए-अम्न अगर कोई ज़ाविया सोचूँ

मिरी ही दीदा-वरी ख़ुद हरीफ़ है मेरी
मिरे ही ऐब खुलें जब कोई क़बा सोचूँ

अमल का रद्द-ए-अमल है मिज़ाज में मेरे
मिरी ख़ुदी हो जवाँ जब तिरी अना सोचूँ

फ़रेब इतने मिले मुझको इस जहाँ से 'सबा'
वफ़ा-परस्त मिले भी तो बे-वफ़ा सोचूँ

  - divya 'sabaa'

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