"पत्र"
मुझे मन के कमरे की सफाई में कुछ मिला है
एक ट्रंक है लोहे का
पीले रंग से रंगा हुआ है जिस पर
जूही के सफेद फूल बने हैं
पतली लम्बी रेशमी मखमली लता के तरह
बढ़ने वाली बड़ी क्षुप की तरह
और उसमें रखा एक पत्र
जिसमें तुम्हारा नाम तुम्हारी लिखा है
और मेरा नाम नहीं सिर्फ़ प्रिय लिखा है
पत्र भी तुम्हारी तरह सुव्यवस्थित है
हर एक लाइन, हर एक अक्षर
बाएँ तरफ से थोड़ा हटकर
पत्र के मज़मून कुछ धुँधले पड़े हैं
शायद इसलिए कि
साल दर साल दिल रोता रहा
पर अब भी मैं इन्हें पढ़ सकता हूँ
कुछ यूँ कि
मेरे दिन किसी अंगार से हो गए हैं
रातें लम्बी और बर्फ सी जमी हैं
हसरतें उबासी लेने लगी हैं
और तमन्नायें अंगड़ाई लेती हैं
मन का सूरज भरी दोपहर डूब रहा है
पूरा दिन सिर्फ एक करवट में गुज़र रहा है
मेरा बिस्तर, मेरी तकिया भीगी है
लगता है गर्म मौसम में गिरे पसीने से
यूँ आँख मलने को जब हाथ लगाया
तो पता चला नहीं ये तो अश्रु धारा है
जो शुष्क और सूखे गिलाफों को भिगो रही है
वो पहला गुलाब का फूल जो
तुम्हारे प्रेम निवेदन का प्रतीक है
उसे काँच के एक मर्तबान में डाल दिया है
इस उम्मीद में कि जब तुम वापस लौटोगे
तब तक ये उसी तरह ताज़ा और नम
रहेगा जैसे मेरा और तुम्हारा प्रेम
पतझड़ के इस मौसम में
प्रेम वृक्ष की सूखी शाख
मेरे चेहरे पर झूलती दिखती है
मेरी माँ कई बार मेरे सर से सात मिर्चें
बायीं ओर घुमा के जला चुकी है
कुछ और भी किया है उसने नज़र उतरने को
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