फिर उनसे दिल लगा कर देखते हैं
नए रिश्ते बना कर देखते हैं
बड़ा ज़रख़ेज़ है दामन तुम्हारा
कोई आँसू गिरा कर देखते हैं
नए तो कुछ नहीं लगते कि जब हम
पुराने ग़म उठा कर देखते हैं
ये किसके नूर से रौशन है कमरा
चराग़ों को बुझा कर देखते हैं
ग़ज़ल में कुछ कमी सी लग रही है
तुम्हें शेरों में ला कर देखते हैं
मज़े की बात ये है फूल भी अब
तुम्हें ही मुस्कुरा कर देखते हैं
As you were reading Shayari by Karan Sahar
our suggestion based on Karan Sahar
As you were reading undefined Shayari