कोई भी शेर मेरा जब तलक बूढ़ा नहीं होता

  - Harsh Kumar Bhatnagar

कोई भी शेर मेरा जब तलक बूढ़ा नहीं होता
उसे पढ़ता रहूँगा तब तलक दूजा नहीं होता

कभी सोचा न था मक़्तल के बाहर मारे जाएँगे
कहानी में सभी के साथ तो अच्छा नहीं होता

ख़बर होने न दूँगा अपने ज़ख़्मों की कभी तुझको
मैं बस हँसता रहूँगा जब तलक गिर्या नहीं होता

कहाँ सीखा है ये वादा-ख़िलाफ़ी का हुनर तुम ने
मुदब्बिर में मियाँ इतना कोई जज़्बा नहीं होता

हमारा मसअला भी इस ज़माने के ही जैसा है
जो करना चाहते हैं हम कभी वैसा नहीं होता

इन्हें तो सिर्फ़ लम्स-ए-आश्ना ले डूबेगी इक दिन
कभी अन्धों को रंग-ओ-रूप का चस्का नहीं होता

तुम्हारे जश्न से सब लोग आजिज़ हो गए हैं 'हर्ष'
कभी सिगरेट नहीं होती कभी ठर्रा नहीं होता

  - Harsh Kumar Bhatnagar

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