वहशत से भर चुका कोई सरशार ढूँढिए

  - Harsh Kumar Bhatnagar

वहशत से भर चुका कोई सरशार ढूँढिए
इक आख़िरी दफ़ा ही सही प्यार ढूँढिए

जब छूटने लगे ये तिरी तिश्नगी का दम
अम्बर को देखिए कोई ग़म-ख़्वार ढूँढिए

आँखें बता रही हैं मोहब्बत तुझे भी है
पर होंठ कह रहे हैं कि गुफ़्तार ढूँढिए

गर आप चाहते हैं तअल्लुक़ बना रहे
तो आप कोई ज़ख़्म असर-दार ढूँढिए

गर्दन को चूम लेंगे ये झुमके तिरे मगर
ज़ुल्फ़ों के वास्ते कोई रुख़्सार ढूँढिए

  - Harsh Kumar Bhatnagar

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