सच ग़लत का तलबगार है ही नहीं - Manohar Shimpi

सच ग़लत का तलबगार है ही नहीं
इसलिए कोई तकरार है ही नहीं

शक्ल सूरत लगे और ही कुछ तभी
मरकज़ी है वो किरदार है ही नहीं

इश्क़ का रंग जब और भद्दा लगे
बेवफ़ा है वफ़ादार है ही नहीं

बद-म'आशी जहाँ पर कहीं भी रहे
फिर वहाँ कोई सरकार है ही नहीं

इश्क़ पर ही लिखी है "मनोहर" ग़ज़ल
क्या मुहब्बत करे प्यार है ही नहीं

- Manohar Shimpi
2 Likes

More by Manohar Shimpi

As you were reading Shayari by Manohar Shimpi

Similar Writers

our suggestion based on Manohar Shimpi

Similar Moods

As you were reading undefined Shayari