इश्क़ की बात से राह में खो गया
सुब्ह से शाम फिर चाह में खो गया
देखते देखते दंग क्यूँ फिर हुआ
एक मुस्कान से ख़्वाह में खो गया
चाहिए था मुझे जो वही तो मिला
देखके फिर उसी जाह में खो गया
शब सुलगती रही और बुझती रही
हुस्न-ए-शब देखके गाह में खो गया
राह चलते मेरा काम कुछ रह गया
फिर अकेला उसी राह में खो गया
इक नुमाइश जहांँ जादू क्या चल गया
फिर ख़ुशामद भरी वाह में खो गया
रात के उस पहर शम्अ' ऐसे जली
चाँद भी और ही राह में खो गया
इक मुलाक़ात में क्या पता क्या हुआ
हमसफ़र तेरे ही ख़्वाह में खो गया
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