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Judai Shayari
कितना आसाँ था तिरे हिज्र में मरना जानाँ
फिर भी इक उम्र लगी जान से जाते जाते
Ahmad Faraz
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सुब्ह तक हिज्र में क्या जानिए क्या होता है
शाम ही से मिरे क़ाबू में नहीं दिल मेरा
Jigar Moradabadi
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जिस की आँखों में कटी थीं सदियाँ
उस ने सदियों की जुदाई दी है
Gulzar
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हम कहाँ और तुम कहाँ जानाँ
हैं कई हिज्र दरमियाँ जानाँ
Jaun Elia
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फ़िराक़-ए-यार ने बेचैन मुझ को रात भर रक्खा
कभी तकिया इधर रक्खा कभी तकिया उधर रक्खा
Ameer Minai
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सर-ज़मीन-ए-हिंद पर अक़्वाम-ए-आलम के 'फ़िराक़'
क़ाफ़िले बसते गए हिन्दोस्ताँ बनता गया
Firaq Gorakhpuri
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'मुनीर' अच्छा नहीं लगता ये तेरा
किसी के हिज्र में बीमार होना
Muneer Niyazi
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ख़ौफ़ आता है अपने साए से
हिज्र के किस मक़ाम पर हूँ मैं
Siraj Faisal Khan
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तड़पना हिज्र तक सीमित नहीं है
उसे दुल्हन भी बनते देखना है
Anand Verma
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कैसी बिपता पाल रखी है क़ुर्बत की और दूरी की
ख़ुशबू मार रही है मुझ को अपनी ही कस्तूरी की
Naeem Sarmad
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जाड़ों की रातें उस पर भी तुमसे ये जुदाई
बाहों की छोड़ो हमको हासिल नहीं रजाई
Harsh saxena
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अमीर इमाम के अशआर अपनी पलकों पर
तमाम हिज्र के मारे उठाए फिरते हैं
Ameer Imam
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हिज्र में इश्क़ यूँ रखा आबाद
हिचकियांँ तन्हा तन्हा लेते रहे
Siraj Tonki
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हिज्र में इश्क़ यूँ रखा आबाद
हिचकियाँ तन्हा तन्हा लेते रहे
Siraj Tonki
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किसी से दूरी बनाई किसी के पास रहे
हज़ार कोशिशें कर लीं मगर, उदास रहे
Sawan Shukla
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महीनों तक रहा करते थे सब मेहमान आँखों में,
मग़र अब ख़्वाब भी आते नहीं वीरान आँखों में
ज़मान ए हिज्र कहने को रिवाज़ ए इश्क़ ही तो है,
मग़र क्या क्या नहीं होता है इस दौरान आँखों में
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Abhas Nalwaya Darpan
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बता रहा है झटकना तेरी कलाई का
ज़रा भी रंज नहीं है तुझे जुदाई का
मैं ज़िंदगी को खुले दिल से खर्च करता था
हिसाब देना पड़ा मुझको पाई-पाई का
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Azhar Faragh
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मर्म हँसने का समझ पाए ज़रा हम देर से
वस्ल जिसको कह रहे थे हिज्र की बुनियाद थी
Atul K Rai
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कितना झूठा था अपना सच्चा इश्क़
हिज्र से दोनों ज़िंदा बच निकले
Prit
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तुम्हारा बैग भी तय्यार कर के रक्खा है
अकेली हिज्र के आज़ार क्यों उठाऊँ मैं
Zahraa Qarar
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