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हंसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया - Muneer Niyazi

हंसी छुपा भी गया और नज़र मिला भी गया
ये इक झलक का तमाशा जिगर जला भी गया

उठा तो जा भी चुका था अजीब मेहमांथा
सदाएंदे के मुझे नींद से जगा भी गया

ग़ज़ब हुआ जो अंधेरे में जल उठी बिजली
बदन किसी का तिलिस्मात कुछ दिखा भी गया

हवा थी गहरी घटा थी हिना की ख़ुशबू थी
ये एक रात का क़िस्सा लहू रुला भी गया

चलो 'मुनीर' चलें अब यहांरहें भी तो क्या
वो संग-दिल तो यहां से कहीं चला भी गया

- Muneer Niyazi

Khushboo Shayari

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