ग़ज़ब मासूमियत चेहरे से वो छलका गया था क्या
लबों की सुर्ख़ पंखुड़ियों से रस बरसा गया था क्या
तुम अब तक कसमसाते से हो यूँ जैसे के लजवन्ती
कोई नज़रों से कमसिन जिस्म को सहला गया था क्या
यूँ ज़िद करते हुए से तुम अचानक मुस्कुराई क्यों
तुम्हें तस्वीर दिलवर की कोई दिखला गया था क्या
कि इस युग में तुम्हें उस सा कहीं हमदम नहीं मिलना
भविष्यत-वाक़या पहले कोई बतला गया था क्या
तड़प मिलने की थी पर अब बिछड़ने की क़वायद है
सर-ए-फ़ितना कोई आकर तुम्हें फुसला गया था क्या
अज़ब तूफ़ान-ए-उल्फ़त था मगर अब यूँ अदावत है
के दौर-ए-पुर-फ़ितन ऐसा कोई बरपा गया था क्या
मुक़द्दर में तुम्हारे मैं मेरे में बस तुम्हीं तुम थे
तो फिर झूठा कोई तुमको यूँ ही बहका गया था क्या
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