एक मुद्दत से नहीं जाता हूँ बुत-ख़ाने में
रिंद हूँ मैं जो पड़ा रहता हूँ रिंदाने में
आप आएँ तो यहाँ बाद-ए-सबा है वर्ना
इतनी ख़ुशियाँ भी कहाँ आती हैं वीराने में
एक ही ग़म क्या तुम्हें ता-उम्र रुलवाएगा
इतनी नर्मी भी कभी आती है दीवाने में
आपका क्या है ख़फ़ा हों तो अदा होती है
जान-ए-जाँ खिल्ली यहाँ उड़ती है रिंदाने में
रोज़ ख़ुद को ही बनाता है मिटा देता है
ऐसी शोख़ी भी कभी होती है दीवाने में
एक लड़की की मुहब्बत में तबाह होते हो
ऐसी कितनी ही पड़ी होंगी सनम-ख़ाने में
उसके जाने का बहुत ज़्यादा ही दुख है तुमको
हम कभी फुसले हैं मेरी जान फुसलाने में
जानते भी हो मुहब्बत की हक़ीक़त साथी
ऐसी कम-ज़र्फ़ी छलक जाती है बुत-ख़ाने में
ग़ज़लें ऐसी हों कि सर्दी में टपकती रातें
जाम ऐसा हो कि उबले मेरे पैमाने में
इतनी आसानी से दीवाने नहीं मिटते हैं
सदियाँ मिट जाएँगी यूँ 'राकेश' दफ़नाने में
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